Shayari

बरसों निभाया जिनसे मिलते नहीं ख़ुशी से
ऐसे में याद आये कुछ लोग अजनबी से
इस सच को समझने में कुछ देर तो लगती है
मतलब के बिना कोई नहीं मिलता किसी से

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सब कुछ सबको मिल जाये गर ' कौन ख़ुदा को याद करे
दुख जीवन में न आये गर ' कौन ख़ुदा को याद करे

चाहे जितना उड़ ले इंसाँ ' पंख तो बूढ़े होने हैं
उम्र मौत को न लाये गर ' कौन ख़ुदा को याद करे

धूप ख़ुशी की आयी लेकिन कुछ पल की मेहमान रही
ग़म का साया न छाये गर ' कौन ख़ुदा को याद करे

नफ़रत और अदावत न हो ' ऐसा तो नामुमकिन है
दुनिया जन्नत हो जाये गर ' कौन ख़ुदा को याद करे

संगी साथी और जवानी इक दिन सब खो जाते हैं
ख़ुद को तन्हा न पाये गर ' कौन ख़ुदा को याद करे

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बेवजह सच बता दिया हमने
क्यों तेरा दिल दुखा दिया हमने
तुझको धोके में रख लिया होता
हाल 'ए' दिल क्यों सुना दिया हमने

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आज फिर शाम से उदासी है
फिर कोई आरज़ू सी प्यासी है

कैसे इज़हार हो मोहब्बत का
बात कहने को ये ज़रा सी है

मेरी आँखों को मिल गये आँसू
रूह तो अब भी मगर प्यासी है

साक़िया अब तो उठा दे ये नक़ाब
मैकदे में बहुत उदासी है

सैकड़ों ग़म मेरी तलाश में हैं
और ये जान इक ज़रा सी है

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माना की ख़रीदा है हवाओं को आपने
साँसों के लिए कुछ तो मगर छोड़ दीजिए
मासूम आइने को नहीं आपकी ख़बर
ये सच को दिखाता है इसे तोड़ दीजिए

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बेवजह हम उदास रहते हैं
ग़म तो हर इक के पास रहते हैं

मेरे दुश्मन भी कोई ग़ैर नहीं
वो मेरे आस-पास रहते हैं

आजकल उनके मिलने वालों में
लोग कुछ ख़ास-ख़ास रहते हैं

जिनको दौलत है जान से प्यारी
उम्र भर बदहवास रहते हैं

हम तो मदहोश ही भले यारब
होश वाले उदास रहते हैं

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कुछ तो किया है तुमने ' चर्चा है हर गली में
गर आग नहीं होती ' उठता नहीं धुँआ ये
क्यों रोक रहे हो तुम ' रुसवाइयों के बादल
जब तक न फैल जाये ' रुकता नहीं धुँआ ये

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आता नहीं मज़ा अब दुनिया को मनाने में
मिलती है मुझे ख़ुशियाँ बच्चों को हँसाने में

जिस छत का आसरा था जिस घर में रह रहे थे
मसरूफ़ हो गये क्यों उस घर को जलाने में

कुछ वक़्त तो लगता है बहते हुए दरिया को
अपना वजूद खोकर सागर से निभाने में

कैसे बताऊँ सबको ये राज़ दोस्ती का
इक उम्र गुज़रती है इक दोस्त बनाने में

दौलत के समंदर में कश्ती को बहाता है
फिर भी है वो परेशाँ साहिल को मनाने में

क्यों आप चले आये फिर से मेरी महफ़िल में
गुज़री है उम्र सारी माज़ी को भुलाने में

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वो मेरा हाल सरे-आम पूछता है मगर
मेरी मुश्किल में मेरे पास क्यों नहीं होता
वो मेरे ज़ख़्म देखता है चारागर की तरह
मेरी हालत पे वो उदास क्यों नहीं होता

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जीने के लिए कोई बहाना भी चाहिए
दुनिया के रिवाजों से निभाना भी चाहिए

आसान सी डगर पे जीना बहुत कठिन है
मुश्किल का हुनर आपको आना भी चाहिए

साँसों का सिलसिला ये थम जाये न अचानक
रूठे हुए लोगों को मनाना भी चाहिए

जब जान फंस गयी तो उनको ख़याल आया
पिंजरे के परिंदों को उड़ाना भी चाहिए

बचपन तो सवेरा था दिन भर की जवानी थी
अब शाम 'ए' ज़िंदगी को ठिकाना भी चाहिए

मुश्किल में पड़ गया हूँ कैसे बताऊँ तुझको
मुझको तेरे सिवा ये ज़माना भी चाहिए

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